EN اردو
हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है | शाही शायरी
haal mein jine ki tadbir bhi ho sakti hai

ग़ज़ल

हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है

फ़रहत नदीम हुमायूँ

;

हाल में जीने की तदबीर भी हो सकती है
ज़िंदगी माज़ी की तस्वीर भी हो सकती है

आस में उस की न हर काम अधूरा छोड़ो
उस के आने में तो ताख़ीर भी हो सकती है

मेरा हर ख़्वाब तो बस ख़्वाब ही जैसा निकला
क्या किसी ख़्वाब की ताबीर भी हो सकती है

दिल तो मेरा था मगर ये मुझे मालूम न था
ये किसी और की जागीर भी हो सकती है

ज़िंदगी जलने लगी आतिश-ए-तंहाई में
जुर्म-ए-उल्फ़त की ये ताज़ीर भी हो सकती है

दिल को बर्बाद नहीं करना कि इस में फिर से
ख़्वाहिशों की नई तामीर भी हो सकती है

थक गया हूँ मैं हिकायात-ए-जुनूँ लिख लिख कर
ये मिरी आख़िरी तहरीर भी हो सकती है