नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
अहसन यूसुफ़ ज़ई
जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से
ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है
ऐन ताबिश
हम तिरे ख़्वाबों की जन्नत से निकल कर आ गए
देख तेरा क़स्र-ए-आली-शान ख़ाली कर दिया
ऐतबार साजिद
हाँ कभी ख़्वाब-ए-इश्क़ देखा था
अब तक आँखों से ख़ूँ टपकता है
अख़्तर अंसारी
कोई मआल-ए-मोहब्बत मुझे बताओ नहीं
मैं ख़्वाब देख रहा हूँ मुझे जगाओ नहीं
अख़्तर अंसारी
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मैं ने जो ख़्वाब अभी देखा नहीं है 'अख़्तर'
मेरा हर ख़्वाब उसी ख़्वाब की ताबीर भी है
अख़्तर होशियारपुरी
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ख़्वाब गलियों में फिर रहे थे और
लोग अपने घरों में सोए थे
अख़्तर रज़ा सलीमी
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