ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'
इस का मतलब है मिरा यार ख़फ़ा है मुझ से
अहमद अता
ज़िंदगी ख़्वाब है और ख़्वाब भी ऐसा कि मियाँ
सोचते रहिए कि इस ख़्वाब की ताबीर है क्या
अहमद अता
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
मैं ने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़्वाब की ताबीर बताने वाला
अहमद फ़राज़
रात क्या सोए कि बाक़ी उम्र की नींद उड़ गई
ख़्वाब क्या देखा कि धड़का लग गया ताबीर का
अहमद फ़राज़
नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ
शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था
अहमद मुश्ताक़
रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
अहमद शहरयार