जिसे सय्याद ने कुछ गुल ने कुछ बुलबुल ने कुछ समझा
चमन में कितनी मानी-ख़ेज़ थी इक ख़ामुशी मिरी
जिगर मुरादाबादी
ख़मोशी में हर बात बन जाए है
जो बोले है दीवाना कहलाए है
कलीम आजिज़
हम न मानेंगे ख़मोशी है तमन्ना का मिज़ाज
हाँ भरी बज़्म में वो बोल न पाई होगी
कालीदास गुप्ता रज़ा
शोर जितना है काएनात में शोर
मेरे अंदर की ख़ामुशी से हुआ
काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
निकाले गए इस के मअ'नी हज़ार
अजब चीज़ थी इक मिरी ख़ामुशी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
रात मेरी आँखों में कुछ अजीब चेहरे थे
और कुछ सदाएँ थीं ख़ामुशी के पैकर में
ख़ुशबीर सिंह शाद
ख़मोशी दिल को है फ़ुर्क़त में दिन रात
घड़ी रहती है ये आठों पहर बंद
लाला माधव राम जौहर