ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता
ख़ामुशी इख़्तियार करता हूँ
अज़ीज़ हैदराबादी
'बाक़ी' जो चुप रहोगे तो उट्ठेंगी उँगलियाँ
है बोलना भी रस्म-ए-जहाँ बोलते रहो
बाक़ी सिद्दीक़ी
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जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
जो कहती है कहती है मुझ से मिरी ख़ामोशी
बेदम शाह वारसी
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मुझे तो होश न था उन की बज़्म में लेकिन
ख़मोशियों ने मेरी उन से कुछ कलाम किया
बहज़ाद लखनवी
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हर तरफ़ थी ख़ामोशी और ऐसी ख़ामोशी
रात अपने साए से हम भी डर के रोए थे
भारत भूषण पन्त
ख़ामोशी में चाहे जितना बेगाना-पन हो
लेकिन इक आहट जानी-पहचानी होती है
भारत भूषण पन्त
सबब ख़ामोशियों का मैं नहीं था
मिरे घर में सभी कम बोलते थे
भारत भूषण पन्त
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