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वहशतें भी कितनी हैं आगही के पैकर में | शाही शायरी
wahshaten bhi kitni hain aagahi ke paikar mein

ग़ज़ल

वहशतें भी कितनी हैं आगही के पैकर में

ख़ुशबीर सिंह शाद

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वहशतें भी कितनी हैं आगही के पैकर में
जल रहा है सूरज भी रौशनी के पैकर में

रात मेरी आँखों में कुछ अजीब चेहरे थे
और कुछ सदाएँ थीं ख़ामुशी के पैकर में

हर तरफ़ सराबों के कुछ हसीन मंज़र थे
और मैं भी हैराँ था तिश्नगी के पैकर में

मैं ने तो तसव्वुर में और अक्स देखा था
फ़िक्र मुख़्तलिफ़ क्यूँ है शाएरी के पैकर में

रूप रंग मिलता है ख़द्द-ओ-ख़ाल मिलते हैं
आदमी नहीं मिलता आदमी के पैकर में

क्या बताएँ हम दिल पर 'शाद' क्या गुज़रती है
ग़म छुपाना पड़ता है जब ख़ुशी के पैकर में