मैं चुप रहा कि वज़ाहत से बात बढ़ जाती
हज़ार शेवा-ए-हुस्न-ए-बयाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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जो चुप रहा तो वो समझेगा बद-गुमान मुझे
बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
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वो बोलता था मगर लब नहीं हिलाता था
इशारा करता था जुम्बिश न थी इशारे में
इक़बाल साजिद
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बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ में
आबले पड़ गए ज़बान में क्या
जौन एलिया
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ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम
जौन एलिया
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मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से
जौन एलिया
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घड़ी जो बीत गई उस का भी शुमार किया
निसाब-ए-जाँ में तिरी ख़ामुशी भी शामिल की
जावेद नासिर
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