चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
उसे बेचैन कर जाऊँगा मैं भी
ख़मोशी से गुज़र जाऊँगा मैं भी
अमीर क़ज़लबाश
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एक दिन मेरी ख़ामुशी ने मुझे
लफ़्ज़ की ओट से इशारा किया
अंजुम सलीमी
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खुली ज़बान तो ज़र्फ़ उन का हो गया ज़ाहिर
हज़ार भेद छुपा रक्खे थे ख़मोशी में
अनवर सदीद
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मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है
ख़मोशी भी है ये आवाज़ भी है
अर्श मलसियानी
ख़मोशी मेरी मअनी-ख़ेज़ थी ऐ आरज़ू कितनी
कि जिस ने जैसा चाहा वैसा अफ़्साना बना डाला
आरज़ू लखनवी
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अजीब शोर मचाने लगे हैं सन्नाटे
ये किस तरह की ख़मोशी हर इक सदा में है
आसिम वास्ती
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