ये हासिल है मिरी ख़ामोशियों का
कि पत्थर आज़माने लग गए हैं
मदन मोहन दानिश
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हर एक बात ज़बाँ से कही नहीं जाती
जो चुपके बैठे हैं कुछ उन की बात भी समझो
महशर इनायती
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ख़ामुशी तेरी मिरी जान लिए लेती है
अपनी तस्वीर से बाहर तुझे आना होगा
मोहम्मद अली साहिल
मेरी अर्ज़-ए-शौक़ बे-मअ'नी है उन के वास्ते
उन की ख़ामोशी भी इक पैग़ाम है मेरे लिए
मुईन अहसन जज़्बी
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चुप चुप क्यूँ रहते हो 'नासिर'
ये क्या रोग लगा रक्खा है
नासिर काज़मी
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मैं हूँ रात का एक बजा है
ख़ाली रस्ता बोल रहा है
नासिर काज़मी
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रंग दरकार थे हम को तिरी ख़ामोशी के
एक आवाज़ की तस्वीर बनानी थी हमें
नाज़िर वहीद