ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते
अख़्तर शीरानी
दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
अल्लामा इक़बाल
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
एक ही रंग है दुनिया को जिधर से देखा
असअ'द बदायुनी
लेता नहीं किसी का पस-ए-मर्ग कोई नाम
दुनिया को देखना है तो दुनिया से जा के देख
असअ'द बदायुनी
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है
असरार-उल-हक़ मजाज़
दुनिया की रविश देखी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता में
बनती है ये मुश्किल से बिगड़ती है ज़रा में
अज़ीज़ हैदराबादी
रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र'
ऐसी बस्ती को तो वीराना बनाया होता
बहादुर शाह ज़फ़र