पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
ऐ दोस्त मेरी ताब-ए-नज़र आज़मा के देख
फूलों की ताज़गी ही नहीं देखने की चीज़
काँटों की सम्त भी तो निगाहें उठा के देख
लेता नहीं किसी का पस-ए-मर्ग कोई नाम
दुनिया को देखना है तो दुनिया से जा के देख
दिल में हमारे दर्द ज़माने का है निहाँ
पैवस्त दिल में सैकड़ों पैकाँ जफ़ा के देख
जो बादा-ख़्वार-ए-ग़म हैं उन्हें भी कभी कभी
साक़ी शराब-ए-हुस्न के साग़र पिला के देख
बन जाएगा कभी न कभी दर्द ही दवा
'असअद' के दिल में दर्द की शिद्दत बढ़ा के देख
ग़ज़ल
पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
असअ'द बदायुनी