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दिल शायरी | शाही शायरी

दिल

292 शेर

तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी




वादा झूटा कर लिया चलिए तसल्ली हो गई
है ज़रा सी बात ख़ुश करना दिल-ए-नाशाद का

दाग़ देहलवी




इश्क़ ने जिस दिल पे क़ब्ज़ा कर लिया
फिर कहाँ उस में नशात ओ ग़म रहे

दत्तात्रिया कैफ़ी




वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
वो हँस पड़े मुझे मुश्किल में डालने के लिए

एहसान दानिश




ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
पहले कम-बख़्त मिरा दिल तो मिरा दिल हो जाए

एहसान दानिश




और ज़िक्र क्या कीजे अपने दिल की हालत का
कुछ बिगड़ती रहती है कुछ सँभलती रहती है

एजाज़ सिद्दीक़ी




तुम्हारी याद निकलती नहीं मिरे दिल से
नशा छलकता नहीं है शराब से बाहर

फ़हीम शनास काज़मी