रात इक शख़्स बहुत याद आया
जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़
पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए
बलवान सिंह आज़र
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
बशीर बद्र
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए
बशीर बद्र
रात को रोज़ डूब जाता है
चाँद को तैरना सिखाना है
बेदिल हैदरी
चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
फ़रहत एहसास
वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा
तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं
फ़रहत एहसास