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गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए | शाही शायरी
gar mujhe meri zat mil jae

ग़ज़ल

गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए

बलवान सिंह आज़र

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गर मुझे मेरी ज़ात मिल जाए
इक नई काएनात मिल जाए

ख़्वाब है उस से बात करने का
कोई ख़्वाबों की रात मिल जाए

ग़म-ज़दा लोग सोचते होंगे
ज़िंदगी से नजात मिल जाए

कोई कुछ भी बदल नहीं सकता
जिस को जैसी हयात मिल जाए

पूछना चाँद का पता 'आज़र'
जब अकेले में रात मिल जाए