वक़्त जब राह की दीवार हुआ
कोई सैलाब नुमूदार हुआ
उस ने पेड़ों से हटा लीं शाख़ें
बाग़ में से तू कई बार हुआ
मैं ने जो दिल में छुपाना चाहा
मेरे चेहरे से नुमूदार हुआ
साहिली-शाम का फैला मंज़र
कुछ लकीरों में गिरफ़्तार हुआ
रात इक शख़्स बहुत याद आया
जिस घड़ी चाँद नुमूदार हुआ
ग़ज़ल
वक़्त जब राह की दीवार हुआ
अज़ीज अहमद ख़ाँ शफ़क़