दूर के चाँद को ढूँडो न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
निदा फ़ाज़ली
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फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब
सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
परवीन शाकिर
मुझे ये ज़िद है कभी चाँद को असीर करूँ
सो अब के झील में इक दाएरा बनाना है
शहबाज़ ख़्वाजा
चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है
चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
हम-सफ़र हो तो कोई अपना-सा
चाँद के साथ चलोगे कब तक
शोहरत बुख़ारी
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इक चाँद है आवारा-ओ-बेताब ओ फ़लक-ताब
इक चाँद है आसूदगी-ए-हिज्र का मारा
सय्यद अमीन अशरफ़
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