EN اردو
इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगे | शाही शायरी
itne aansu to na the dida-e-tar ke aage

ग़ज़ल

इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगे

मीर हसन

;

इतने आँसू तो न थे दीदा-ए-तर के आगे
अब तो पानी ही भरा रहता है घर के आगे

दम-ब-दम मुझ को तसव्वुर है उसी दिलबर का
रात दिन फिरता है मेरी वो नज़र के आगे

हैं ये ऐ जान मिरे दिल से मुझे अपने अज़ीज़
तेरे दाग़ों को मैं रखता हूँ जिगर के आगे

गर्मी अपनी को फ़रामोश करें महर-विशाँ
सर्द हो जाएँ सब उस रश्क-ए-क़मर के आगे

बाद-ए-तुंदी से मियाँ तेरी मुझे हैरत है
क्यूँकि रखता है तपांचाों को कमर के आगे

तेरे दाँतों से मैं तश्बीह न दूँ गौहर को
पूत को क़द्र नहीं सिल्क-ए-गुहर के आगे

ज़ोर से काम निकलता नहीं बे ज़र के दिए
ज़र भी हर्बा है तिरा एक बशर के आगे

ज़र अगर बरसर-ए-फ़ौलाद नहीं नर्म शुअद
ज़ोर का ज़ोर धरा रहता है ज़र के आगे

किस को कहता है मियाँ याँ से सरक याँ से सरक
कोई बैठा नहीं आ कर तिरे दर के आगे

ये तो मज्लिस है जहाँ बैठ गए बैठ गए
क्यूँ जगह बदले कोई काहे को सरके आगे

अब कहाँ जाए 'हसन' हाथों से तेरे ज़ालिम
रख लिया तू ने उसे तेग़-ओ-सिपर के आगे