फ़ाएदा आने से ऐसे आ के पछताएँ हैं हम
उठ गए जब याँ के गुज़रे आह तब आएँ हैं हम
और कुछ तोहफ़ा न था जो लाते हम तेरे नियाज़
एक दो आँसू थे आँखों में सो भर लाएँ हैं हम
तरफ़ा हालत है न वो आता है न जाता है जी
और यहाँ बे-ताक़ती से दिल की घबराएँ हैं हम
जिस तरफ़ जाते वहाँ लगता नहीं क्या कीजिए
इस दिल-ए-वहशी के हाथों सख़्त उकताएँ हैं हम
देखिए अब क्या जवाब आवे वहाँ से हम-नशीं
नामा तो लिख कर 'हसन' का उस को पहुंचाएँ हैं हम
ग़ज़ल
फ़ाएदा आने से ऐसे आ के पछताएँ हैं हम
मीर हसन