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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

मेरे रोने की हक़ीक़त जिस में थी
एक मुद्दत तक वो काग़ज़ नम रहा

where the true saga of my weeping was contained
sodden, moist for ages then, that paper remained

मीर तक़ी मीर




'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया

Why is it you seek to know, of Miir's religion, sect, for he
Sits in temples, painted brow, well on the road to heresy

मीर तक़ी मीर




मिरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में
तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

in my own way I have dealt with love you see
all my life I made my failures work for me

मीर तक़ी मीर




न नमाज़ आती है मुझ को न वज़ू आता है
सज्दा कर लेता हूँ जब सामने तू आता है

ablutions I do not know, nor do I know prayer
i just bow in worship whenever you are there

मोहम्मद अली जौहर




जब मोहब्बत का नाम सुनता हूँ
हाए कितना मलाल होता है

when mention of love is there
Aah! I feel such deep despai

मुईन अहसन जज़्बी




किसी के साथ गुज़ारा हुआ वो इक लम्हा
अगर मैं सोचने बैठूँ तो ज़िंदगी कम है

that single moment I had spent in someone's company
were I to sit and ponder it a lifetime's short for me

मुईन शादाब




चल दिए सू-ए-हरम कू-ए-बुताँ से 'मोमिन'
जब दिया रंज बुतों ने तो ख़ुदा याद आया

from the streets of idols fair
to the mosque did I repai

मोमिन ख़ाँ मोमिन