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4 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

4 लाइन शायरी

446 शेर

तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

in such a manner are you close to me
when no one else at all there ever be

मोमिन ख़ाँ मोमिन




तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे

where will you go I worry, do find a place to stay
O lonely night tomorrow, death will take me away

मोमिन ख़ाँ मोमिन




उम्र तो सारी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन'
आख़िरी वक़्त में क्या ख़ाक मुसलमाँ होंगे

Momin all your life in idol worship you did spend
How can you be a Muslim say now towards the end?

मोमिन ख़ाँ मोमिन




उस नक़्श-ए-पा के सज्दे ने क्या क्या किया ज़लील
मैं कूचा-ए-रक़ीब में भी सर के बल गया

bowing to her footsteps brought me shame I dread
I went to my rival's street standing on my head

मोमिन ख़ाँ मोमिन




वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि न याद हो
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो

the love that 'tween us used to be, you may, may not recall
those promises of constancy, you may, may not recall

मोमिन ख़ाँ मोमिन




मसर्रतों ने तो चाहा था दिल में आ जाएँ
हुजूम-ए-ग़म ने मगर उन को रास्ता न दिया

happiness did indeed in my heart seek place
but the crowd of sorrows did not move to give them space

मुशीर झंझान्वी




तू चले साथ तो आहट भी न आए अपनी
दरमियाँ हम भी न हों यूँ तुझे तन्हा चाहें

when you walk with me the echo, of my steps should not intrude
I too should not be the between us, I want you in such solitude

मुज़फ़्फ़र वारसी