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नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा | शाही शायरी
nahin ishq mein is ka to ranj hamein ki qarar o shakeb zara na raha

ग़ज़ल

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

बहादुर शाह ज़फ़र

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नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा
ग़म-ए-इश्क़ तो अपना रफ़ीक़ रहा कोई और बला से रहा न रहा

in love I harbour no regret, that peace, patience are nowhere
sorrow is still my intimate, if no one else, I do not care

दिया अपनी ख़ुदी को जो हम ने उठा वो जो पर्दा सा बीच में था न रहा
रहे पर्दे में अब न वो पर्दा-नशीं कोई दूसरा उस के सिवा न रहा

when I erased the "self" in me, the veil no longer was between
no longer shrouded was He; save Him no other could be seen

न थी हाल की जब हमें अपने ख़बर रहे देखते औरों के ऐब ओ हुनर
पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नज़र तो निगाह में कोई बुरा न रहा

while unknowing of myself, in others faults did often see
when my own shortcomings saw, found no one else as bad as me

तिरे रुख़ के ख़याल में कौन से दिन उठे मुझ पे न फ़ित्ना-ए-रोज़-ए-जज़ा
तिरी ज़ुल्फ़ के ध्यान में कौन सी शब मिरे सर पे हुजूम-ए-बला न रहा

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in serving wine to me today, if she, alas, does now delay
impermanent, this age of youth, this time of joy shall go away

हमें साग़र-ए-बादा के देने में अब करे देर जो साक़ी तो हाए ग़ज़ब
कि ये अहद-ए-नशात ये दौर-ए-तरब न रहेगा जहाँ में सदा न रहा

in ages has the moon-faced one deigned to reveal herself to me
my calm, composure I have lost, she's lost her veiled timidity

कई रोज़ में आज वो मेहर-लिक़ा हुआ मेरे जो सामने जल्वा-नुमा
मुझे सब्र ओ क़रार ज़रा न रहा उसे पास-ए-हिजाब-ओ-हया न रहा

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तिरे ख़ंजर ओ तेग़ की आब-ए-रवाँ हुई जब कि सबील-ए-सितम-ज़दगाँ
गए कितने ही क़ाफ़िले ख़ुश्क-ज़बाँ कोई तिश्ना-ए-आब-ए-बक़ा न रहा

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मुझे साफ़ बताए निगार अगर तो ये पूछूँ मैं रो रो के ख़ून-ए-जिगर
मले पाँव से किस के हैं दीदा-ए-तर कफ़-ए-पा पे जो रंग-ए-हिना न रहा

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उसे चाहा था मैं ने कि रोक रखूँ मिरी जान भी जाए तो जाने न दूँ
किए लाख फ़रेब करोड़ फ़ुसूँ न रहा न रहा न रहा न रहा

pierced by a thousand darts of pain, writhing in dust I do remain
as by the twin-edged scimitar of airs and grace I have been slain

लगे यूँ तो हज़ारों ही तीर-ए-सितम कि तड़पते रहे पड़े ख़ाक पे हम
वले नाज़ ओ करिश्मा की तेग़-ए-दो-दम लगी ऐसी कि तस्मा लगा न रहा

deem him not a human being, however wise he may appear
in pleasure he forgets the Lord, and in anger Him does not fear

'ज़फ़र' आदमी उस को न जानिएगा वो हो कैसा ही साहब-ए-फ़हम-ओ-ज़का
जिसे ऐश में याद-ए-ख़ुदा न रही जिसे तैश में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न रहा