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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तुम्हारे होने का शायद सुराग़ पाने लगे
कनार-ए-चश्म कई ख़्वाब सर उठाने लगे

अख़्तर रज़ा सलीमी




यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी
तलाश कीजिए इस का अगर निशाँ कोई है

अख़्तर रज़ा सलीमी




आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना
मुझ से छुप कर मिरी तस्वीर बनाने वाले

अख़्तर सईद ख़ान




बहें न आँख से आँसू तो नग़्मगी बे-सूद
खिलें न फूल तो रंगीनी-ए-फ़ुग़ाँ क्या है

अख़्तर सईद ख़ान




बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से
बहुत अज़ीज़ सही ए'तिबार कुछ भी नहीं

अख़्तर सईद ख़ान




बंद कर दे कोई माज़ी का दरीचा मुझ पर
अब इस आईने में सूरत नहीं देखी जाती

अख़्तर सईद ख़ान




बंद रक्खोगे दरीचे दिल के यारो कब तलक
कोई दस्तक दे रहा है उठ के देखो तो सही

अख़्तर सईद ख़ान