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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

नदिया ने मुझ से कहा मत आ मेरे पास
पानी से बुझती नहीं अंतर्मन की प्यास

अख़्तर नज़्मी




वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं

अख़्तर नज़्मी




यार खिसकती जाएगी मुट्ठी में से रेत
ये तो मुमकिन ही नहीं चिड़िया चुगे न खेत

अख़्तर नज़्मी




ज़िक्र वही आठों पहर वही कथा दिन रात
भूल सके तो भूल जा गए दिनों की बात

अख़्तर नज़्मी




जुनूँ भी ज़हमत ख़िरद भी ल'अनत है ज़ख़्म-ए-दिल की दवा मोहब्बत
हरीम-ए-जाँ में तवाफ़-ए-पैहम यही है अंदाज़-ए-आशिक़ाना

अख़्तर ओरेनवी




कितने ताबाँ थे वो लम्हात तिरे पहलू में
दो घड़ी मेरी भी फ़िरदौस मिना गुज़री है

अख़्तर ओरेनवी




मैं मुंतज़िर हूँ तेरी तमन्ना लिए हुए
आ जा फ़रोग़-ए-हुस्न की दुनिया लिए हुए

अख़्तर ओरेनवी