मिरी आरज़ू की तस्कीं न करम में ने सितम में
मिरा दिल मुदाम तिश्ना तिरी रह के पेच-ओ-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
न मिज़ाज-ए-नाज़-ए-जल्वा कभी पा सकीं निगाहें
कि उलझ के रह गई हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म में
अख़्तर ओरेनवी
आए अदम से एक झलक देखने तिरी
रक्खा ही क्या था वर्ना जहान-ए-ख़राब में
अख़्तर रज़ा सलीमी
अब ज़मीं भी जगह नहीं देती
हम कभी आसमाँ पे रहते थे
अख़्तर रज़ा सलीमी
दिल ओ निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
तुम्हारा हो के भी मुमकिन है मैं रहूँ उस का
अख़्तर रज़ा सलीमी
दिल-ओ-निगाह पे तारी रहे फ़ुसूँ उस का
तुम्हारा हो के भी मुमकिन है मैं रहूँ उस का
अख़्तर रज़ा सलीमी
गुज़र रहा हूँ किसी जन्नत-ए-जमाल से मैं
गुनाह करता हुआ नेकियाँ कमाता हुआ
अख़्तर रज़ा सलीमी