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ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है | शाही शायरी
KHabar nahin thi kisi ko kahan kahan koi hai

ग़ज़ल

ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है

अख़्तर रज़ा सलीमी

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ख़बर नहीं थी किसी को कहाँ कहाँ कोई है
हर इक तरफ़ से सदा आ रही थी याँ कोई है

यहीं कहीं पे कोई शहर बस रहा था अभी
तलाश कीजिए इस का अगर निशाँ कोई है

जवार-ए-क़रिया-ए-गिर्या से आ रही थी सदा
मुझे यहाँ से निकाले अगर यहाँ कोई है

तलाश कर रहे हैं क़ब्र से छुपाने को
तिरे जहान में हम सा भी बे-अमाँ कोई है

कोई तो है जो दिनों को घुमा रहा है 'रज़ा'
पस-ए-गुमाँ ही सही पर पस-ए-जहाँ कोई है