इक दिन तिरी गली में मुझे ले गई हवा
और फिर तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही
विपुल कुमार
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इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
कैसी हसीन शाम में मारा गया मुझे
विपुल कुमार
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इक लम्हा-ए-फ़िराक़ पे वारा गया मुझे
कैसी हसीन शाम में मारा गया मुझे
विपुल कुमार
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इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए
विपुल कुमार
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
आ मिरी जान मोहब्बत से किनारा कर लें
विपुल कुमार
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इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
आ मिरी जान मोहब्बत से किनारा कर लें
विपुल कुमार
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इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
इश्क़ में भी कई ख़ुद्दार निकल आते हैं
विपुल कुमार
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