यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
अकेली हो गई तन्हाई मेरी
विकास शर्मा राज़
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यहाँ तक कर लिया मसरूफ़ ख़ुद को
अकेली हो गई तन्हाई मेरी
विकास शर्मा राज़
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ये सदा काश उसी ने दी हो
इस तरह वो ही बुलाता है मुझे
विकास शर्मा राज़
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ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई
विकास शर्मा राज़
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ज़िंदगी की हँसी उड़ाती हुई
ख़्वाहिश-ए-मर्ग सर उठाती हुई
विकास शर्मा राज़
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इक समुंदर के हवाले सारे ख़त करता रहा
वो हमारे साथ अपने ग़म ग़लत करता रहा
विलास पंडित मुसाफ़िर
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लेने वाले तो सभी कुछ ले गए
आप भी एहसान थोड़ा कीजिए
विलास पंडित मुसाफ़िर
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