कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
मैं चाहता हूँ मिरा इश्क़ जावेदानी हो
विपुल कुमार
कुछ इस लिए भी तिरी आरज़ू नहीं है मुझे
मैं चाहता हूँ मिरा इश्क़ जावेदानी हो
विपुल कुमार
मैं तो शब-ए-फ़िराक़ था तुम एक उम्र थी
फिर भी ज़ियादा तुम से गुज़ारा गया मुझे
विपुल कुमार
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
उस ने जिस शख़्स को चाहा वो मिरे जैसा था
विपुल कुमार
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
उस ने जिस शख़्स को चाहा वो मिरे जैसा था
विपुल कुमार
सफीर-ए-इश्क़ हमें अब तो हम सफ़र कर लो
हमारे पास तो सामान भी ज़ियादा नहीं
विपुल कुमार
तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में
और एक लमहा-ए-इमकान भी ज़ियादा नहीं
विपुल कुमार