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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
मिरे गुनाह भी कार-ए-सवाब में लिखना

उमर अंसारी




बुरा सही मैं प नीयत बुरी नहीं मेरी
मिरे गुनाह भी कार-ए-सवाब में लिखना

उमर अंसारी




चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
हमें तो खा गया साया शजर का

उमर अंसारी




छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
पहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी

उमर अंसारी




छुप कर न रह सकेगा वो हम से कि उस को हम
पहचान लेंगे उस की किसी इक अदा से भी

उमर अंसारी




जो तीर आया गले मिल के दिल से लौट गया
वो अपने फ़न में मैं अपने हुनर में तन्हा था

उमर अंसारी




मुसाफ़िरों से मोहब्बत की बात कर लेकिन
मुसाफ़िरों की मोहब्बत का ए'तिबार न कर

उमर अंसारी