वो चुप लगी है कि हँसता है और न रोता है
ये हो गया है ख़ुदा जाने दिल को रात से क्या
उमर अंसारी
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जो न खुल सका तिरा भेद था
जो न हो सकी मिरी बात थी
उमर फ़रहत
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जो न खुल सका तिरा भेद था
जो न हो सकी मिरी बात थी
उमर फ़रहत
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अब कू-ए-सनम चार क़दम ही का सफ़र है
कुछ और मसाफ़त को ठहर क्यूँ नहीं जाते
उमर फ़ारूक़
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बदन का बोझ उठाना भी अब मुहाल हुआ
जो ख़ुद से हार के बैठे तो फिर ये हाल हुआ
उमर फ़ारूक़
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बदन का बोझ उठाना भी अब मुहाल हुआ
जो ख़ुद से हार के बैठे तो फिर ये हाल हुआ
उमर फ़ारूक़
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हमें तो टूटी हुई कश्तियाँ नहीं दिखतीं
हमारे घर से ही दरिया दिखाई देता है
उमर फ़ारूक़
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