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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ
ऐब ओ हुनर का सारा पर्दा चाक हुआ

उमैर मंज़र




साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए
मैं ज़िंदगी के नाज़ उठाने में रह गया

उमैर मंज़र




साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए
मैं ज़िंदगी के नाज़ उठाने में रह गया

उमैर मंज़र




सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे
मगर टूटी हुई कश्ती में दरिया पार होना था

उमैर मंज़र




तज़्किरा हो तिरा ज़माने में
ऐसा पहलू कोई बयान में रख

उमैर मंज़र




यहाँ हम ने किसी से दिल लगाया ही नहीं 'मंज़र'
कि इस दुनिया से आख़िर एक दिन बे-ज़ार होना था

उमैर मंज़र




यहाँ हम ने किसी से दिल लगाया ही नहीं 'मंज़र'
कि इस दुनिया से आख़िर एक दिन बे-ज़ार होना था

उमैर मंज़र