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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

तलातुम आरज़ू में है न तूफ़ाँ जुस्तुजू में है
जवानी का गुज़र जाना है दरिया का उतर जाना

तिलोकचंद महरूम




उठाने के क़ाबिल हैं सब नाज़ तेरे
मगर हम कहाँ नाज़ उठाने के क़ाबिल

तिलोकचंद महरूम




ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को
जो करते आए हैं इंसाँ न करते हम तो क्या करते

तिलोकचंद महरूम




यूँ तो बरसों न पिलाऊँ न पियूँ ऐ ज़ाहिद
तौबा करते ही बदल जाती है नीयत मेरी

तिलोकचंद महरूम




यूँ तो बरसों न पिलाऊँ न पियूँ ऐ ज़ाहिद
तौबा करते ही बदल जाती है नीयत मेरी

तिलोकचंद महरूम




बस यही इक काम बाक़ी था जो करना है मुझे
मैं मोहब्बत बो रहा हूँ नफ़रतों के दरमियाँ

तिश्ना बरेलवी




क़रीब आ न सका मैं तिरे मगर ख़ुश हूँ
कि मेरा ज़िक्र तिरी दास्ताँ से दूर नहीं

तिश्ना बरेलवी