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दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ | शाही शायरी
din mein suraj hai meri mahrumiyon ka tarjuman

ग़ज़ल

दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ

तिश्ना बरेलवी

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दिन में सूरज है मिरी महरूमियों का तर्जुमाँ
ज़ुल्मत-ए-शब में सितारे हिज्र ओ ग़म के राज़-दाँ

चाँद सूरज हैं पराए अजनबी है कहकशाँ
हम फ़क़ीरों के लिए फ़र्श-ए-ज़मीं है आसमाँ

जल्वा-ए-माशूक़ भी है इक करिश्मा अल-अमाँ
सात पर्दों में निहाँ हो कर भी हर जानिब अयाँ

मंज़िल-ए-गिर्या कहाँ है चश्म-ए-तर को क्या ख़बर
ता-अबद भटकेगा मेरे आँसुओं का कारवाँ

दिल को जाना था गया इक फ़ालतू सी चीज़ था
सीना-ए-आशिक़ में यारो दिल की गुंजाइश कहाँ

बस यही इक काम बाक़ी था जो करना है मुझे
मैं मोहब्बत बो रहा हूँ नफ़रतों के दरमियाँ

ये फ़साना इश्क़ का यानी ख़ज़ाना प्यार का
साथ है तिश्ना अज़ल से दास्ताँ-दर-दास्ताँ