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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब
उस के लाखों हैं ख़रीदार कि माल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम




दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम




दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते
उन के आने से जो बीमार का हाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम




फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इन मुश्किलों से अहद-बरआई न हो सकी

तिलोकचंद महरूम




है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम




है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम




हूँ वो बर्बाद कि क़िस्मत में नशेमन न क़फ़स
चल दिया छोड़ कर सय्याद तह-ए-दाम मुझे

तिलोकचंद महरूम