हसद का रंग पसंदीदा रंग है सब का
यहाँ किसी को कोई अब दुआ नहीं देता
अख्तर लख़नवी
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इक तेरे ही कूचे पर मौक़ूफ़ नहीं है कुछ
हर गाम हैं ताज़ीरें हम लोग जहाँ भी हैं
अख्तर लख़नवी
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इसी हसरत में कटी राह-ए-हयात
कोई दो-चार क़दम साथ चले
अख्तर लख़नवी
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जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन
ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है
अख्तर लख़नवी
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ख़्वाबीदा अपने चाहने वालों को देख कर
मुमकिन है लौट जाए सहर जागते रहो
अख्तर लख़नवी
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कितने महबूब घरों से गए किस को मालूम
वापस आए हैं जो अपनों में ख़बर की सूरत
अख्तर लख़नवी
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मय-ए-कोहना न सही ख़ून-ए-तमन्ना ही सही
एक पैमाना मिरे सामने लाया तो गया
अख्तर लख़नवी
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