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दिल के हर ज़ख़्म को पलकों पे सजाया तो गया | शाही शायरी
dil ke har zaKHm ko palkon pe sajaya to gaya

ग़ज़ल

दिल के हर ज़ख़्म को पलकों पे सजाया तो गया

अख्तर लख़नवी

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दिल के हर ज़ख़्म को पलकों पे सजाया तो गया
आप के नाम पे इक जश्न मनाया तो गया

मय-ए-कोहना न सही ख़ून-ए-तमन्ना ही सही
एक पैमाना मिरे सामने लाया तो गया

ख़ैर अपना नहीं बाग़ी ही समझ कर हम को
तेरी महफ़िल में किसी तौर बुलाया तो गया

अब ये बात और कि ज़िंदाँ में भी ज़ंजीरें हैं
हम को गुलशन की बलाओं से बचाया तो गया

दार पे चढ़ के भी ख़ुश हैं कि हमें इस दिल में
इस बहाने ही सही अपना बनाया तो गया

अब ये क़िस्मत ही न जागे तो करे क्या कोई
रोज़-ओ-शब इक नया तूफ़ान उठाया तो गया

क्या है मंज़िल से अगर हो गए हम दूर 'अख़्तर'
रहबरों के हमें हल्क़े से निकाला तो गया