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सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले | शाही शायरी
su-e-maqtal koi dam sath chale

ग़ज़ल

सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले

अख्तर लख़नवी

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सू-ए-मक़्तल कोई दम साथ चले
जिस को रखना हो भरम साथ चले

इसी हसरत में कटी राह-ए-हयात
कोई दो-चार क़दम साथ चले

ख़ार-ज़ारों में जहाँ कोई न था
बन के हम-दम तिरे ग़म साथ चले

हम से रिंदों का ठिकाना क्या है
तुम कहाँ शैख़-ए-हरम साथ चले

वादी-ए-शब की कठिन राहों में
लोग कतरा गए कम साथ चले