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अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है | शाही शायरी
ab dard ka suraj kabhi Dhalta hi nahin hai

ग़ज़ल

अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है

अख्तर लख़नवी

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अब दर्द का सूरज कभी ढलता ही नहीं है
अब दिल कोई पहलू हो सँभलता ही नहीं है

बेचैन किए रहती है जिस की तलब-ए-दीद
अब बाम पे वो चाँद निकलता ही नहीं है

इक उम्र से दुनिया का है बस एक ही आलम
ये क्या कि फ़लक रंग बदलता ही नहीं है

नाकाम रहा उन की निगाहों का फ़ुसूँ भी
इस वक़्त तो जादू कोई चलता ही नहीं है

जज़्बे की कड़ी धूप हो तो क्या नहीं मुमकिन
ये किस ने कहा संग पिघलता ही नहीं है