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होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो | शाही शायरी
hoshyar kar raha hai gajar jagte raho

ग़ज़ल

होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो

अख्तर लख़नवी

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होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो
ऐ साहिबान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र जागते रहो

दश्त-ए-शब-ए-सियाह में सुनते हैं शब-परस्त
रोकेंगे कारवान-ए-सहर जागते रहो

ज़ुल्मत कहीं न कर दे उजाले को दाग़-दार
ले कर चराग़-ए-दीदा-ए-तर जागते रहो

सोए नहीं कि डूब गई नब्ज़-ए-काएनात
बोझल हो लाख आँख मगर जागते रहो

ख़्वाबीदा अपने चाहने वालों को देख कर
मुमकिन है लौट जाए सहर जागते रहो