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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

कौन से दुख को पल्ले बाँधें किस ग़म को तहरीर करें
याँ तो दर्द सिवा होता है और भी अर्ज़-ए-हाल के ब'अद

तौसीफ़ तबस्सुम




क्या ये सच है कि ख़िज़ाँ में भी चमन खिलते हैं
मेरे दामन में लहू है तो महकता क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम




पाँव में लिपटी हुई है सब के ज़ंजीर-ए-अना
सब मुसाफ़िर हैं यहाँ लेकिन सफ़र में कौन है

तौसीफ़ तबस्सुम




पाँव में लिपटी हुई है सब के ज़ंजीर-ए-अना
सब मुसाफ़िर हैं यहाँ लेकिन सफ़र में कौन है

तौसीफ़ तबस्सुम




शौक़ कहता है कि हर जिस्म को सज्दा कीजे
आँख कहती है कि तू ने अभी देखा क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम




ऐ हम-नफ़स न पूछ जवानी का माजरा
मौज-ए-नसीम थी इधर आई उधर गई

तिलोकचंद महरूम




अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
ग़ैर को राज़-दाँ नहीं करते

तिलोकचंद महरूम