रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं
अश्क बच्चों की तरह घर से निकल जाते हैं
तौक़ीर तक़ी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |
सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
ज़र्द पत्ते भरे मंज़र से निकल जाते हैं
तौक़ीर तक़ी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
यानी कुछ बात तो है कोह-ए-निदा में ऐसी
तौक़ीर तक़ी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
यानी कुछ बात तो है कोह-ए-निदा में ऐसी
तौक़ीर तक़ी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |
ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स
जिस को देखो वही औक़ात से निकला हुआ है
तौक़ीर तक़ी
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
अच्छा है कि सिर्फ़ इश्क़ कीजे
ये उम्र तो यूँ भी राएगाँ है
तौसीफ़ तबस्सुम
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |
अच्छा है कि सिर्फ़ इश्क़ कीजे
ये उम्र तो यूँ भी राएगाँ है
तौसीफ़ तबस्सुम
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
| 2 लाइन शायरी |