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दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है | शाही शायरी
dil tha pahlu mein to kahte the tamanna kya hai

ग़ज़ल

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

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दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है
अब वो आँखों में तलातुम है कि दरिया क्या है

शौक़ कहता है कि हर जिस्म को सज्दा कीजे
आँख कहती है कि तू ने अभी देखा क्या है

टूट कर शाख़ से इक बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-आमादा
सोचता है कि गुज़रता हुआ झोंका क्या है

क्या ये सच है कि ख़िज़ाँ में भी चमन खिलते हैं
मेरे दामन में लहू है तो महकता क्या है

दिल पे क़ाबू हो तो हम भी सर-ए-महफ़िल देखें
वो ख़म-ए-ज़ुल्फ़ है क्या सूरत-ए-ज़ेबा क्या है

ठहरो और एक नज़र वक़्त की तहरीर पढ़ो
रेग-ए-साहिल पे रम-ए-मौज ने लिखा क्या है

कोई रहबर है न रस्ता है न मंज़िल 'तौसीफ़'
हम कि गर्द-ए-रह-ए-सर-सर हैं हमारा क्या है