ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
क़तरे में मुहीत लाख क़ुल्ज़ुम
ताबिश देहलवी
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ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
क़तरे में मुहीत लाख क़ुल्ज़ुम
ताबिश देहलवी
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अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
वो बात करते हुए भी नई उड़ान में था
ताबिश कमाल
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हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
कि जिस का कोई मुस्तक़बिल नहीं था
ताबिश कमाल
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हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
कि जिस का कोई मुस्तक़बिल नहीं था
ताबिश कमाल
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जिस ने इंसाँ से मोहब्बत ही नहीं की 'ताबिश'
उस को क्या इल्म कि पिंदार से आगे क्या है
ताबिश कमाल
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कई पड़ाव थे मंज़िल की राह में 'ताबिश'
मिरे नसीब में लेकिन सफ़र कुछ और से थे
ताबिश कमाल
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