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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'
अबस डरता है तू दोज़ख़ से इक शरई दरक्का है

ताबाँ अब्दुल हई




न जा वाइज़ की बातों पर हमेशा मय को पी 'ताबाँ'
अबस डरता है तू दोज़ख़ से इक शरई दरक्का है

ताबाँ अब्दुल हई




न थे आशिक़ किसी बे-दाद पर हम जब तलक 'ताबाँ'
हमारे दिल के तईं कुछ दर्द-ओ-ग़म तब तक न था हरगिज़

ताबाँ अब्दुल हई




नेमत-ए-अल्वान भी ख़्वान-ए-फ़लक की देख ली
माह नान-ए-ख़ाम है और महर नान-ए-सोख़्ता

ताबाँ अब्दुल हई




नेमत-ए-अल्वान भी ख़्वान-ए-फ़लक की देख ली
माह नान-ए-ख़ाम है और महर नान-ए-सोख़्ता

ताबाँ अब्दुल हई




फिर मेहरबाँ हुआ है 'ताबाँ' मिरा सितमगर
बातें तिरी किसी ने शायद सुनाइयाँ हैं

ताबाँ अब्दुल हई




क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
क़ातिल से अब तो हम ने आँखें लड़ाइयाँ हैं

ताबाँ अब्दुल हई