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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो
उस की छू, की किताब और ही है

ताबाँ अब्दुल हई




रिंद वाइज़ से क्यूँ कि सरबर हो
उस की छू, की किताब और ही है

ताबाँ अब्दुल हई




सफ़र दुनिया से करना क्या है 'ताबाँ'
अदम हस्ती से राह-ए-यक-नफ़स है

ताबाँ अब्दुल हई




सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
वो सिखा देगा तुझे जान नमाज़-ए-माकूस

ताबाँ अब्दुल हई




सोहबत-ए-शैख़ में तू रात को जाया मत कर
वो सिखा देगा तुझे जान नमाज़-ए-माकूस

ताबाँ अब्दुल हई




सुने क्यूँ-कर वो लब्बैक-ए-हरम को
जिसे नाक़ूस की आए सदा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई




'ताबाँ' ज़ि-बस हवा-ए-जुनूँ सर में है मिरे
अब मैं हूँ और दश्त है ये सर है और पहाड़

ताबाँ अब्दुल हई