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यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह | शाही शायरी
yar ruTha hai mera usko manaun kis tarah

ग़ज़ल

यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह

ताबाँ अब्दुल हई

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यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
मिन्नतें कर पाँव पड़ उस के ले आऊँ किस तरह

जब तलक तुम को न देखूँ तब तलक बेचैन हूँ
मैं तुम्हारे पास हर साअत न आऊँ किस तरह

दिल धड़कता है मबादा उठ के देवे गालियाँ
यार सोता है मिरा उस को जगाऊँ किस तरह

बुलबुलों के हाल पर आता है मुज को रहम आज
दाम से सय्याद के उन को छुड़ाऊँ किस तरह

यार बाँका है मिरा छुट तेग़ नईं करता है बात
उस से ऐ 'ताबाँ' मैं अपना जी बचाऊँ किस तरह