EN اردو
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश | शाही शायरी
tu mil us se ho jis se dil tera KHush

ग़ज़ल

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

;

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
बला से तेरी मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश

ख़ुशी तेरी जिसे हर-दम हो दरकार
कोई इस से नहीं होता है ना-ख़ुश

कोई अब के ज़माने में न होगा
इलाही आश्ना से आश्ना ख़ुश

फ़लक के हाथ से ऐ ख़ालिक़-ए-ख़ल्क़
कुइ नहीं आ के दुनिया में रहा ख़ुश

तिरा साया हो जिस पर उस को हरगिज़
न आवे साया-ए-बाल-ए-हुमा ख़ुश

क़फ़स में आह हद ईज़ा है हम को
न आती काश गुलशन की हवा ख़ुश

अगर लावे तू बू उस गुल-बदन की
तो हों तुझ से निहायत ऐ सबा ख़ुश

किया क़त्ल उन ने मुझ को ग़ैर से मिल
हुआ दुश्मन जुदा ख़ुश वो जुदा ख़ुश

नसीहत की थी उन ने मय-कशों को
बहुत मस्तों ने ज़ाहिद को किया ख़ुश

मू-ए-आतिश में जल परवाना ओ शम्अ'
मोहब्बत से मैं उन की हद हुआ ख़ुश

किया चाक ऐ जुनूँ तिरा भला हो
कभू मैं इस गरेबाँ से न था ख़ुश

गया था सैर को ले साक़ी ओ मय
न आई बाग़ की आब-ओ-हवा ख़ुश

किया क़ातिल ने बिस्मिल को मिरे देख
मुझे लगता है इस का लोटना ख़ुश

सुने क्यूँकर वो लब्बैक-ए-हरम को
जिसे नाक़ूस की आए सदा ख़ुश

सताना बे-दिलों के दिल को हर-दम
तुम्हें ऐ दिलबरो आता है क्या ख़ुश

सुमूद ओ क़ाक़ुम ओ संजाब है पश्म
मुझे आता है टूटा बोरिया ख़ुश

सनम के पास से क़ासिद फिरा है
ख़ुदा जाने कि मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश

कोई ख़ुश होवे ख़ूबाँ की वफ़ा से
मुझे तो उन की आती है जफ़ा ख़ुश

न छोड़ूँगा कभी मैं बुत-परस्ती
न हो गो मुझ से ऐ 'ताबाँ' ख़ुदा ख़ुश