हमें हर आने वाला ज़ख़्म-ए-ताज़ा दे के जाता है
हमारे चाँद सूरज और सितारे एक जैसे हैं
अख़्तर अमान
तमाम उम्र गुज़र जाती है कभी पल में
कभी तो एक ही लम्हा बसर नहीं होता
अख़्तर अमान
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
सहते सहते हम को आख़िर रंज सहना आ गया
अख़्तर अंसारी
ऐ सोज़-ए-जाँ-गुदाज़ अभी मैं जवान हूँ
ऐ दर्द-ए-ला-इलाज ये उम्र-ए-शबाब है
अख़्तर अंसारी
अपनी उजड़ी हुई दुनिया की कहानी हूँ मैं
एक बिगड़ी हुई तस्वीर-ए-जवानी हूँ मैं
अख़्तर अंसारी
दिल-ए-फ़सुर्दा में कुछ सोज़ ओ साज़ बाक़ी है
वो आग बुझ गई लेकिन गुदाज़ बाक़ी है
अख़्तर अंसारी
दूसरों का दर्द 'अख़्तर' मेरे दिल का दर्द है
मुब्तला-ए-ग़म है दुनिया और मैं ग़म-ख़्वार हूँ
अख़्तर अंसारी