तवील-तर है सफ़र मुख़्तसर नहीं होता
मोहब्बतों का शजर बे-समर नहीं होता
फिर उस के ब'अद कई लोग मिल के बिछड़े हैं
किसी जुदाई का दिल पर असर नहीं होता
हर एक शख़्स की अपनी ही एक मंज़िल है
कोई किसी का यहाँ हम-सफ़र नहीं होता
तमाम उम्र गुज़र जाती है कभी पल में
कभी तो एक ही लम्हा बसर नहीं होता
ये और बात है वो अपना हाल-ए-दिल न कहे
कोई भी शख़्स यहाँ बे-ख़बर नहीं होता
अजीब लोग हैं ये अहल-ए-इश्क़ भी 'अख़्तर'
कि दिल तो होता है पर इन का सर नहीं होता
ग़ज़ल
तवील-तर है सफ़र मुख़्तसर नहीं होता
अख़्तर अमान