आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
सहते सहते हम को आख़िर रंज सहना आ गया
दिल का ख़ूँ आँखों में खिंच आया चलो अच्छा हुआ
मेरी आँखों को मिरा अहवाल कहना आ गया
सहल हो जाएगी मुश्किल ज़ब्त सोज़ ओ साज़ की
ख़ून-ए-दिल को आँख से जिस रोज़ बहना आ गया
मैं किसी से अपने दिल की बात कह सकता न था
अब सुख़न की आड़ में क्या कुछ न कहना आ गया
जब से मुँह को लग गई 'अख़्तर' मोहब्बत की शराब
बे-पिए आठों पहर मदहोश रहना आ गया
ग़ज़ल
आरज़ू को रूह में ग़म बन के रहना आ गया
अख़्तर अंसारी